----//----शैय्या मूत्र (bedwetting)----//----  
  
बिस्तर गीला होना या बिस्तर पर पेशाब होना बच्चों के बीच पायी जाने वाली आम समस्या है. यदि आपके बच्चे भी इस समस्या से ग्रस्त हैं तो चिंता की कोई बात नहीं. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से इसका उपचार संभव है. लेकिन सबसे पहले जरुरी है कि समस्या के जड़ में जाकर उसे समझाना।  
  
bedwetting / nocturnal enuresis / शय्यामूत्र / बिस्तर पर पेशाब  
  
बिस्तर पर सोते समय अनजाने में अपने-आप पेशाब हो जाने को शय्या मूत्र कहा जाता है, यह छोटे बच्चों में पाई जाने वाली एक बेहद सामान्य समस्या है। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं उनमें शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्वता आ जाती है, जिससे बच्चे अपनी मांसपेशियों के नियंत्रण से धीरे-धीरे मूत्र को रोकने व अपनी इच्छा के अनुरूप त्यागने लगते हैं।  
  
सामान्यतः 2 वर्ष तक की उम्र के बच्चे दिन के समय में बिस्तर में पेशाब नहीं करते और 3 से 5 वर्ष तक की आयु के अधिकांश बच्चे बिस्तर पर पेशाब की आदत से मुक्त हो जाते हैं।  
  
लेकिन यदि इस उम्र के बाद भी बच्चों में यह आदत बनी रहे तो यह किसी न किसी प्रकार की विकृति के कारण होता है। इसके साथ-साथ यदि बच्चे में यह परेशानी बनी रहे तो इसके कारण उसे अन्य तरह के शारीरिक विकार जैसे स्नायु दौर्बल्य, खून की कमी, शारीरिक कमजोरी आदि समस्या हो सकती हैं।  
  
शय्या मूत्र की समस्या के यह कारण हो सकते हैं:  
  
1. मानसिक कारण  
  
2. शारीरिक विकृति  
  
3. गलत आदतें  
  
1. मानसिक कारण: बच्चों में किसी चीज का भय, असुरक्षा की भावना, क्रोध, किसी तरह का मनोविकार, माता-पिता का बच्चे के प्रति आक्रामक व्यवहार आदि।  
  
2. शारीरिक विकृति: मूत्र जनन संस्थान में कोई विकृति होने के कारण शय्या मूत्र की स्थिति संभव है, किसी तरह का किडनी या मूत्राशय से सम्बंधित रोग, मधुमेह, पेट की खराबी, पेट में कीड़े आदि।  
  
3. गलत आदतें: पेशाब को रोकने और और उसे इच्छाअनुसार उसके निश्चित स्थान पर त्याग करने की आदत बच्चे को सीखनी पड़ती है, इसमें बच्चों के माता-पिता या अभिभावकों का सहयोग करना बेहद आवश्यक होता है, कुछ अभिभावक अज्ञानवश या अपने आलस के कारण बच्चों की आदतों के निर्माण में उचित सहयोग या ध्यान नहीं देते और कई बार यह ध्यान देने का तरीका भी गलत होता है, जिससे बच्चों में शय्या मूत्र की आदत बन जाती है।  
उपचार:  
  
इस रोग का सबसे पहला उपचार है बच्चों में सही आदतों का निर्माण व यदि यह समस्या अधिक बढ़ गई है तो नियमित रूप से लगातार माता-पिता या अभिभावकों की जागरूकता। इस समस्या में औषधियों को खिलाने से कई बार कोई लाभ नहीं मिलता लेकिन बच्चों की सही देखभाल और उनका सही तरह से प्रशिक्षण उनकी इस परेशानी को सुधारने में निश्चित रूप से कारगर होता है।  
  
शय्या मूत्र रोग से पीड़ित बच्चे को बिल्कुल भी डराये-धमकायें नहीं या मार-पिटाई न करें, ऐसा करना बच्चों के ऊपर उल्टा प्रभाव डालता है, इससे बच्चों में डर व असुरक्षा की भावना और बढ़ जाती है जिससे वह कई बार सिर्फ डर के कारण ही सोते समय बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं, कई बार इस परेशानी से पीड़ित बच्चे स्वप्न में कोई डरावनी चीज़ या किसी के डांटने आदि को देख लेते हैं या कई बार स्वयं को सपनो में वह पेशाब करता हुआ देखते हैं जिससे कई बार वे बिस्तर में ही पेशाब कर देते हैं। कई अभिभावक दूसरे लोगों या बच्चे के दोस्तों के सामने भी बच्चों की ऐसी आदतों को बताकर उनको अपमानित करते हैं या मजाक बनाते हैं जिसका बुरा प्रभाव भी बच्चे के मन पर पड़ता है, हमेशा इस तरह की परेशानी में बच्चे को धैर्य के साथ प्यार से समझायें।  
  
इस रोग से पीड़ित बच्चे को शाम के समय में तरल / पेय पदार्थों का सेवन न करायें, पानी को सिर्फ आवश्यकता के अनुरूप ही दें, रात के समय में माता-पिता अलार्म डालकर बीच में एक बार बच्चे को पेशाब करने के लिए अवश्य उठायें, सुबह के समय (ब्रह्म मुहूर्त) में भी एक बार उसे पेशाब के लिए अवश्य ले जायें।  
  
बच्चों को तली-भुनी चीज़ें, मिर्च-मसालेदार खाना, चाउमीन, पिज़्ज़ा, बर्गर, मैगी, कोल्ड ड्रिंक्स, पास्ता, पैकेट बंद खाद्य पदार्थ आदि का सेवन बंद करवाना चाहिए।  
  
अभिभावकों की समझदारी, धैर्य व सही सावधानी से बच्चों की यह आदत जल्दी ठीक हो सकती है।  
  
युक्ति व्यपाश्रय चिकित्सा:  
  
• बच्चों को खाने में मुनक्का, छुआरा, किशमिश, अखरोट का सेवन करवायें।  
  
• तिल-अजवायन (दोनों 1 - 1 भाग), गुड़ (4 भाग) सभी को मिलाकर, मटर के दाने के सामान छोटी गोली बना लें दिन में 2 - 3 बार देने से बच्चों को लाभ मिलता है।  
  
• तिल के लड्डू भी इस परेशानी में लाभदायक होते हैं।  
  
• बच्चों के कटी प्रदेश व शरीर पर तेल की मालिश अवश्य करें, इससे माशपेशियों व नाड़ियों की दुर्बलता दूर होती है।  
  
• शास्त्रोक्त औषध योगों में बहुमूत्रान्तक रस, वंग भस्म, त्रिवंग भस्म, शिलाजीत, अरविन्दासव, बाल चतुरभद्र चूर्ण जैसे योग लाभकारी होते हैं।  
  
• मधुमेह की स्थिति में बच्चों का इस रोग के अनुरूप उपचार करें।  
  
• कृमि रोग होने पर इससे जुड़ी चिकित्सा करें.
		


 
											
Dr Ravi
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Rekha gaidhane
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