*आज का श्लोक* 
 
काष्ठौषध्यो नागे, नागं वङ्गे अथ वङ्गंमपि शुल्वं। 
शुल्वं तारे तारं कनके, कनकं च लीयते सूते।। 
(र.हृ.तं १/१२) 
 
जैसे सृष्टि के समस्त प्राणियों में निवास करने वाली आत्मा, परमात्मा में लीन हो जाती है; ऐसे ही स्थावर सृष्टि के समस्त उद्भिद एवं पार्थिव द्रव्य पारद में लीन हो जाते हैं। 
इनका क्रम इस प्रकार है― काष्ठ औषधियाँ नाग में, नाग वंग में, वंग शुल्व (ताम्र) में, शुल्व तार (रजत) में, तार स्वर्ण में तथा स्वर्ण पारद में लीन हो जाता है।
		
Suka
			
			 Komentar 		
	
					 Membagikan				
						 
											
Rupali Garg
Hapus Komentar
Apakah Anda yakin ingin menghapus komentar ini?