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आज का श्लोक

बुद्ध्या विषमविज्ञानं विषमं च प्रवर्तनम्।
प्रज्ञापराधं जानीयान्मनसो गोचरं हि तत्।।
(च.शा. १/१०९)

बुद्धि से उचित रूप में ज्ञान न होना, (कभी यथार्थ ज्ञान, कभी अयथार्थ ज्ञान का होना) और विषम अर्थात अनुचित रूप से कर्मों में प्रवृत्त होना, इसे प्रज्ञापराध जानना चाहिये। ये विषम ज्ञान और विषम प्रवृत्ति मन के विषय हैं।